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Friday, August 7, 2009

परिणयगाथा - अध्‍याय 1 - प्रेम का प्रमोद

प्रेम का प्रमोद

‘वह अपने मुंह के चुम्ब नों से मुझे चूमे ! क्‍योंकि तेरा प्रेम दाखमधु से उत्तम है’ (श्रेष्ठ गीत 1:2)


यहूदियों की रीतिरिवाज के अनुसार विवाहोपरान्तउ अंगीकार स्व रूप पति पत्नी  एक दूसरे का चुम्ब)न लेते थे। इस चुम्बिन का अर्थ विवाह में एक दूसरे को ग्रहण किये जाने का साक्ष्यि माना जाता था जो अति आवश्यइक होता था।


‘वह अपने मुंह के चुम्बानों से मुझे चूमे !

यह प्रेयसी का अपने प्रेमी के प्रति प्रेम तथा समर्पण को दर्शाता है। चुम्बतन आपस में मेल का बोध है और परस्पसर सहभागिता को दर्शाता है। इन अन्तिम दिनों में परमेश्वनर हमसे किस प्रकार निकटता से बातें करता है तथा परस्पगरता प्रगट करता है।


‘तेरा प्रेम दाखमधु से उत्तम है’

दाखमधु आनन्द  का प्रतीक है। ईश्वकरीय प्रेम से ही वास्ताविक आनन्दर प्राप्तब होता है। दाखमधु का तो मूल्यु है परन्तु  परमेश्वर के प्रेम का कोई मूल्य  नहीं और न ही हमें इसे प्राप्त करने के लिए कुछ खर्च करना पड़ता है और न ही पड़ा था। दाखमधु की एक और बात यह कि यह खट्टा भी हो जाता है, परन्तु मसीह के प्रेम में कभी कोई खट्टापन नहीं आता।


श्रेष्‍ठगीत - सार

श्रेष्‍ठगीत का सार

कुरियन थामस 

पलश्‍तीन देश के उत्‍तरी भाग में गिलबोहा पर्वत के सामने इस्‍साकार गोत्र के स्‍थान पर सुनेम (शुलेम) नामक एक गांव था। कार्मेल पर्वत से सोलह मील दूरी पर स्थित इस गांव की एक रूपवती युवती (शूलेमन) भेड़ बकरियां चराती थी। जब वह भेड़ बकरियां चराने के कार्य में व्‍यस्‍त थी तभी उसकी भेंट एक गडरिये से हुई। बस पहिली ही भेंट में गडरिये ने शुलेमी के हृदय में प्रेम के बीज बो दिये। प्यार के बीजों में अंकु फूटे और वे दोनों एक दूसरे को इतना चाहने लगे कि एक दूसरे के बिना उनका रहना मुश्किल हो गया। उन्‍होंने परिणयबंधन का निर्णय किया। ऐसे मधुर बंधन के इन्तजार में जब यह युवती अपना समय बिता रही थी तभी राजा सुलेमान उस स्थान से गुजरे। राजा सुलेमान के अभिवादन में गीत गाने के लिए कुछ तरूण युवतियां एकत्र हुई जिनमें यह युवती भी थी। अन् अनेक युवतियों के बीच में घिरी इस सांवली युवती शुलेमी की सुन्दरता पर राजा सुलेमान मोहित हो गया तथा उसके रूप और सदगुणों की चाहत से खिंचकर राजा उसे अपने महल में ले आया।

शुलेमी तो पहले ही अपना हृदय उस गडरिये को समर्पित कर चुकी थी फिर राजा की प्रेयसी क्‍यों कर बनती शुलेमी ने राजा सुलेकान की इच्‍छा का भरपूर विरोध किया; और दूसरी ओर यरूशलेम की पुत्रियों ने भी प्रयत्‍न किया कि शुलेमी राजा से आकर्षित हो और राजपत्‍नी बने। यरूशलेम की पुत्रियों ने उसे खूब समझाया की राजपत्‍नी होने पर उसे क्‍या क्‍या लाभ होंगे, और राजा की भव्‍यता और प्रतापमय कार्यों के वर्णन द्वारा शुलेमी के दिल में राजा के लिए प्रेम पैदा करने की कोशिश करती रही, परन्‍तु लबानोन के राजमहल में रहने वाली इस गा्मीण कन्‍या के दिल पर राजा की भव्‍यता और ऐश्‍वर्य का किंचित भी असर नहीं पड़ा। उसका प्रेम तो दिन प्रतिदिन उस गडरिये के लिए बढ़ता ही गया। राजा सुलेमान ने देखा कि उस चुवती का प्रेम स्थिर और सच्‍चा है। अपनी हार मानकर उस युवती की प्रशंसा की और उसे स्‍वतंत्र कर दिया। इस प्रकार उस युवती को अपने चहैते प्रेमी चरवाहे के साथ परिणय का अवसर मिला।

कलीसिया से यीशु ख्रीष्‍ट के पवित्र प्रेम का समानान्‍तर अर्थ और प्रतीक इस पुस्‍तक में देखने को मिलता है। कलीसिया ने भी इसी प्रकार मसीह अर्थात उस प्रधान गडरिये से उसकी मुहब्‍बत के बदले उससे प्रेम करते का वादा किया तथा उसी को अपना दिल समर्पित किया। श्रेष्‍ठगीत पुस्‍तक का अध्‍ययन मसीह और कलीसिया के बीच पवित्र बंधन के सन्‍दर्भ में ही किया जाना चाहिए। अय्यूब की पुस्‍तक में क्‍लेश का अनूठा वर्णन नीतिवचन से जीवन का स्‍पष्‍टीकरण, तथा सभोपदेशक से ईश्‍वरीय भलाई का वर्णन मिलता है। नीतिवचन तथा श्रेष्‍ठगीत हमारी बुद्धि को उत्‍तेजना प्रदान करते हैं तथा श्रेष्‍ठगीत की विशेष प्रेरणा हृदय के लिए है कि वह प्रेम के निवास स्‍थान पर ही रहे।

कुरियन थामस - परिणयगाथा - प्रवेशिका

प्रवेशिका


श्रेष्‍ठगीत पुस्‍तक की रचना इस्राएल के मधुर गायक राजा दाउद के पुत्र राजा सुलेमान द्वारा हुई। इस पुस्‍तक पर काव्‍य रूप में ये शब्‍द उचित बैठते हैं: ‘वाक्‍यम रसात्‍मक काव्‍यम’। अपने पिता दाउद के रसात्‍मक काव्‍य का प्रभाव सुलेमान पर बाल्‍यकाल से ही पड़ चुका था। इस पुसतक की काव्‍यात्‍मकता और साहित्यिक रस को बढ़ाने में ईश्‍वरीय ज्ञान और प्रेरणा का सुलेमान के जीवन में अनुपम प्रभाव पाया जाता है। सम्‍पूर्ण पुस्‍तक असंख्‍य आत्मिक शिक्षाओं और प्रेरणाओं से भरी पड़ी है जो कि साहितियक दृष्टि से अमूल्‍य है। साहित्‍य प्रेमियों ने यदि इस पुस्‍तक को नहीं पढ़ा है तो उनके लिए एक बड़ी हानि है। प्राचीन से ही देखा गया है कि पत्रकारिता में विद्धता हासिल करने वालों तथा अन्‍य लेखकों ने भी श्रेष्‍ठगीत पुस्‍तक का अच्‍छा अघ्‍ययन किया।

हमारे महाविधालय में तो अग्रेजी साहित्‍य पढने वाले शिक्षक विघाथियों को सलाह दिया करते थे कि सम्‍पुर्ण बाइबिल की एक एक प्रति अपने पास रखें तथा रखें तथा उसे घ्‍यान से पुरा पढे। शयद यही कारण है कि आज भारत से भी अनेक अन्‍य धर्मावलम्‍बी भी बाइबिल का अच्‍छा ज्ञान रखते है। भ्‍ले वह मात्र ज्ञान ही क्‍यों न हो अर्थात व्‍यवहारिकता से परे।  परन्‍तु परिणयगाथा आपके ज्ञान को प्रगढ करेगी तथा उस छिपे हुए रहस्‍य और कलीसिया तथा मसीह के बीच पवित्र सम्‍बन्‍ध की स्‍पष्‍ट झलक प्रस्‍तुत करेगी।


लेखक: राजा सुलेमान (यह नाम 7 बार लिया गया है। 7 प्रमाणिकता को दर्शाती है।)

राजा सुलेमान का नाम इस पुस्‍तक में सात बार लिया जाता है जो कि प्रमाणिकता को सिद्ध करने वाली संख्‍या है। 


पृष्‍ठभूमी:

राजा सुलेमान सांवले रंग की एक ग्रामीण कन्‍या द्वारा तिरस्‍कृत किया गया। उन्‍होंने अपनी कमजोरियों को छिपाना मुनासिब नहीं जाना, परन्‍तु उदार दिल से महापुरूषों की तरह अपने काव्‍य में उंडेल दिया।

इस कृति का नाम श्रेष्‍ठगीत इब्रानी भाषा के आधार पर पड़ा। ऑरिगन जेरोम के अनुसार कहा जाता है कि तीस वर्ष की आयु से कम वाले यहूदियों को इस पुस्‍तक को पढ़ने की आज्ञा नही थी। केवल परिपक्‍व यहूदी ही अलंकारिक भाषा में लिखित इस पुस्‍तक द्वारा पवित्र प्रेम के मर्म का अध्‍ययन कर सकते थे।

यहूदियों की परम्‍परानुसार यह गीत यहूदी लोग फसह के पर्व पर गाया करते थे। आर्कवार रबी के अनुसार इस्राएल के लिए श्रेष्‍ठगीत की प्राप्ति का दिन सारे संसार की प्राप्ति के दिन से भी अधिक महत्‍व रखता है। केवल इतना ही नहीं, यह पुस्‍तक परम पवित्र भी मानी जाती है।

(संपादक: इससे यह कदाचित तात्‍पर्य नही की अन्‍य बाईबल के पुस्‍तक कम पवित्र है। श्रेष्‍ठगीत की महत्‍ता अन्‍य सांसारिक कृ‍तियों के मध्‍य अपरिमित है।) 

इस पुस्‍तक में जिस प्रेमी की चर्चा की गई है, यह विवादित है। कुछ तो मानते है कि प्रेमी राजा सुलेमान थे, और कुछ मानते है कि यह नायक एक गुमनाम चरवाहा है। परन्‍तु अनेक स्त्रियों का ब्‍याहने वाले राजा सुलेमान कैसे अद्वैत प्रेम कर सकता है: ‘मेरी कबूतरी, मेरी निर्मल अद्वैत है’ (श्रेष्‍ठ. 6:9)। प्रेयसी भी एक अपने प्रेमी के लिए कहती है: वह अपनी भेड़ बकरियों का सोसन के फूलों के बीच में चराता है (श्रेष्ठे. 2:16)। यह कथन तो सुलेमान के विषय में नही कहा जा सकता। श्रेष्ठनगीत में अनेक स्‍थानों पर अन्‍तर्साक्ष्‍यों द्वारा यह स्‍पष्‍ट तौर पर कहा जा सकता है कि शुलेमी का प्रेमी राजा सुलेमान नहीं परन्तू एक चरवाहा है।