प्रेम का प्रमोद‘वह अपने मुंह के चुम्ब नों से मुझे चूमे ! क्योंकि तेरा प्रेम दाखमधु से उत्तम है’ (श्रेष्ठ गीत 1:2)
यहूदियों की रीतिरिवाज के अनुसार विवाहोपरान्तउ अंगीकार स्व रूप पति पत्नी एक दूसरे का चुम्ब)न लेते थे। इस चुम्बिन का अर्थ विवाह में एक दूसरे को ग्रहण किये जाने का साक्ष्यि माना जाता था जो अति आवश्यइक होता था।
‘वह अपने मुंह के चुम्बानों से मुझे चूमे !यह प्रेयसी का अपने प्रेमी के प्रति प्रेम तथा समर्पण को दर्शाता है। चुम्बतन आपस में मेल का बोध है और परस्पसर सहभागिता को दर्शाता है। इन अन्तिम दिनों में परमेश्वनर हमसे किस प्रकार निकटता से बातें करता है तथा परस्पगरता प्रगट करता है।
‘तेरा प्रेम दाखमधु से उत्तम है’दाखमधु आनन्द का प्रतीक है। ईश्वकरीय प्रेम से ही वास्ताविक आनन्दर प्राप्तब होता है। दाखमधु का तो मूल्यु है परन्तु परमेश्वर के प्रेम का कोई मूल्य नहीं और न ही हमें इसे प्राप्त करने के लिए कुछ खर्च करना पड़ता है और न ही पड़ा था। दाखमधु की एक और बात यह कि यह खट्टा भी हो जाता है, परन्तु मसीह के प्रेम में कभी कोई खट्टापन नहीं आता।
Friday, August 7, 2009
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mujhe aap ke songs bahut achhe lage. hamare yaha aap ke songs nahi milte.maine net se load kare ki koshis ki par kamiyab.nahi ho paya. mai pichhale 2 year se bible parata aa raha hun.
ReplyDeletekya aap ke gane mujhe mi sakte hai.please